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बंद आँखों का मंजर- डॉ दक्षा जोशी


ग़ज़ल 

                   " बंद आंखों का मंज़र"

इक परिंदा अभी उड़ान में है
तीर हर शख़्स की कमान में है!
जिस को देखो वही है चुप-चुप सा,
जैसे हर शख़्स इम्तिहान में है!
खो चुके हम यक़ीन जैसी शय
तू अभी तक किस गुमान में है?
ज़िंदगी संग-दिल सही, लेकिन,
आईना भी इसी चटान में है!
सर-बुलंदी नसीब हो कैसे
सर-निगूँ है,
 के साए-बान में है।
ख़ौफ़ ही ख़ौफ़ जागते सोते
कोई आसेब इस मकां में है।
आसरा दिल को इक उम्मीद का है
ये हवा कब से बाग-बान में है।
ख़ुद को पाया 
न उम्र भर हम ने,
कौन है 
जो हमारे ध्यान में है?
आज मैं उस से बिछड़ कर देखूँ...
बंद आँखों से वो मंज़र देखूँ
रेग-ए-सहरा को
 समंदर देखूँ।
क्या गुज़रती है मेरे बाद
 उस पर,
आज मैं उस से बिछड़ कर देखूँ।
शहर का शहर हुआ 
पत्थर का,
मैंने चाहा था के
 मुड़ कर देखूँ।
ख़ौफ़, तंहाई ,घुटन ,सन्नाटा
क्या नहीं मुझ में 
जो बाहर देखूँ?
हर इक शख़्स का दिल है 
पत्थर का,
मैं जिधर जाऊँ 
ये पत्थर देखूँ!
कुछ तो अंदाज़-ए-तूफ़ाँ हो ‘निर्झरा’,
नाव काग़ज़ की 
चला कर  तो देखूँ।
अगर वो डूब गया 
 तो दूर निकलेगा...
मेरे जुनूँ का नतीजा ज़रूर निकलेगा।
इसी सियाह समंदर से नूर निकलेगा।

-डॉ .दक्षा जोशी ‘ निर्झरा’ ,गुजरात ।

6 comments

  1. बहुत खूब,निम्न शब्दो में बहुत कुछ कह दिया हे
  2. માત્ર વાંચી નહોતી આ રચના, આંખો માં શાતા મેળવી મે, શત શત વંદન રચનાકાર ને, રચનાકાર નું નામ ક્યાં અજાણ્યું છે, બંધ આંખો માં સમંદર માં હું તર્યો, રચનાકાર ની રચના નું સત્વ એટલું છે કે, ડૂબી ના ગયો. R J Dave
  3. ગગન માં જ તારલા એમ સૌ માને ખોટું, હું માનું છું કે આ ઉદાર માયાળુ મહેરામણ માં, માત્ર ઝગારા મારતાં તારલા નથી તેઓ, શાતા પણ આપે છે.‌ આ રચના ના રચનાકાર હા, ચોક્કસ તેવા છે.R J Dave
  4. बड़ी सुंदर ऐसी स्नेही श्री डॉ. दक्षा
    जोशी जी की है, अभिनंदन के तौर
    पर मेरी ये रचना " हसीन मंज़र "
    कर के बंध ये तन की आंख
    और देखा जो खोल कर ये
    मन की आंख ,,,
    तो देखा मन की आंखो से
    इस ज़माने का मंज़र,,,,
    चारो ओर दिखाई दिए सिर्फ
    खंजर ही खंजर,,,,,,
    पुकार उठा ये दिल की तू है
    एक भोला भाला " दीपक "
    कर दे तू बंद ये तेरी मन की
    आंख,,,,
    देखता रहे ये तेरी तन की ही
    आंख से,,,,
    दिखाई देगा, जूठा ही सही,
    ऐसा रंगीन हसीन हर लम्हा,
    और हर मंज़र,,,
    💓🪔🦚💖🎻🎺🌹
  5. माननीय स्नेही डॉ. दक्षा जोशी जी
    को अभिनंदन देता हूं मै, ये उन की
    सुंदर प्रस्तुति के लिए,,
    और उन के अनुसंधान मे मैने लिखी
    मेरी स्वरचित रचना,,,
    " हसीन मंज़र "
    *************************
    जब तन की आंखों को कर दिया बंध
    हो गए हम ऐसे अंध,,,
    तब दिखाई दिया मन की आंखों से ये
    जगत का सही रंग,,,,
    दिखने लगे चारो ओर लोगो के अपने
    उड़ाए हुवे गुब्बारे,,,,
    सवाल उठा मन मे ही, की है परमात्मा
    कहां खो गए ये आप के बनाए हुए जो
    थे हसीन नझारे!?!?
    न दिखते है इस मन की आंखों से कहीं
    भी कोई दिल,,,
    कर दी मन की आंखे बंद और खोल दी
    ये तन की ही आंखे,,
    नही देख सकते थे हम ओर कुछ ज्यादा
    जो दिखने लगे थे ये मन की खुली हुई
    आंखो के ऐसे सच्चे नझारे,,,
    फिर दिल ही पुकारने लगा ऐ "दीपक"
    अब बंध कर तू ये मन की आंखे,,,,
    फिर देखने लगे, फिर कर के मन की जो
    खोली थी आंखे वो कर के बंध,,
    इन्ही बंध आंखो से दिखते थे जो जूठे ये
    नजारे,,,,
    💓🪔🎻🦚🪴🌹🎺🏵️🦋🌻💖
    A Writer & Poet,,,
    Deepakbhai Poojara,
    Retired Inspector
    Rajkot Municipal
    corporation, Rajkot,
    Gujarat State, India
    🎺🎻💖🏵️🌻🥁🎼
  6. 🏆 I listened to your Gazal in the near past conference. The Ma Sarswati and The Great Divine Power in your inner soul. शत शत नमन आपके रुह को।🙏 R J Dave
आपकी बहुमूल्य प्रतिक्रिया का इंतजार सदैव रहेगा।
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