ग़ज़ल
दिल मिल गए तो प्यार की शुरुआत हो गई।
सब से बड़ी खुशी की ये सौगात हो गई।
आई मिलन की रात जुदाई के बाद फिर।
दिल को मिला करार मुलाकात हो गई।
काँटों ने चुभ के दर्द भले ही दिया बहुत।
दिल फूल सा खिला ये बड़ी बात हो गई।
खामोश हो के हमने उसे जब विदा किया।
तब आँसुओं की आँखों से बरसात हो गई।
मुश्किल से वक्त बीता था लम्बी जुदाई का।
जल्दी से खत्म क्यों ये मिलन रात हो गई।
खुश हो के जिस की आपने हम को बधाई दी।
उस जीत के ही बाद तो ये मात हो गई।
कश्यप गले से उस को लगाया था प्यार से।
जिस की छिपी छुरी से ही ये घात हो गई।
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रचनाकार
प्रदीप कश्यप