सृजन से समायोजन तक सिर्फ नारी
शक्ति का वास्तविक अर्थ अगर सही में समझना है तो स्त्री को देखो
क्योंकि शक्ति स्त्री का ही वास्तविक रूप है।
शक्ति को देखना है तो मां की ममता में देखो, पत्नी के पति धर्म में ,प्रेमिका के प्रेम में, शिशु को जन्म देती स्त्री को देखो ।एक मां की शक्ति को देखो जो कुदरत का लिखा हुआ नियम बदलने की शक्ति रखती है ।और क्या लिखूं स्त्री के बारे में ।अक्सर हम सुनते हैं कि एक स्त्री से ही घर बनता है और बिगड़ता है पता नहीं कहां तक सच्चाई है लेकिन इतना तो तय होता है कि जब रिश्तो में समर्पण की बात आती है तो पहले स्त्रियां ही आगे आती हैं ।अब सवाल यह होता है कि नारी को ही शक्ति का पर्याय क्यों माना जाता है?
अगर वैज्ञानिक दृष्टि से देखा जाए तो नारी शरीर की शक्ति उसके विशिष्ट बायोलॉजिकल और साइकोलॉजिकल कर्म से आती है जो उसे उसके सामाजिक और प्राकृतिक रोल का संगठन करने में मदद करते हैं।
अगर हम शास्त्रों को उठाकर देखे तो देखेंगे की शिव में से अगर इकार की मात्रा निकाल दी जाए तो वह शिव से शव हो जाता है। इसलिए ही तो उन्हें अर्धनरेश्वर भी कहा जाता है ।
स्त्री को पुरुष की अर्धांगिनी भी कहा जाता है।
चुकी
हम सभी जानते हैं कि शारीरिक रूप से पुरुष शक्तिशाली होता है और नारी कोमलांगी होती है फिर भी हमने कहीं भी नर के साथ शक्ति का प्रयोग होते नहीं देखा है। मेरे ख्याल से नर शक्ति कहीं नहीं कहा गया है अगर देखा जाए तो शक्ति की पूजा में भी नारी के के ही रूपों की पूजा की जाती है। हम सभी जानते हैं कि हमारा शरीर पांच तत्वों से बना है लेकिन स्त्री में पांच तत्वों की विशेषताएं पांच शक्तियों में समायी है ।
आइए हम और आप मिलकर इस पर थोड़ा विचार कर लें ---
१) समायोजन शक्ति-- यह नारी की अद्भुत शक्ति है यहां नारी की तुलना जल से किया जाता है जल को अगर किसी सांचे में डाला जाता है तो वह उसी सांचे में ढल जाता है। इस तरह नारी भी बचपन से ही जीवन में आने वाले विभिन्न परिदृश्यों में स्वयं को ढालती रहती है ।विवाह के पश्चात एक स्त्री ना केवल दूसरे परिवार को अपनाती है बल्कि उस परिवार के नियम- मर्यादाओं रीति- रिवाजों व परिवार के सदस्यों के स्वभाव के अनुरूप अपने को सहज समायोजित भी ही कर लेती है।
२)सृजन शक्ति- यह एक अद्भुत शक्ति है जो सिर्फ स्त्री को ही प्राप्त है ।नारी ही निर्मात्री है यह केवल भावी पीढ़ी का सृजन ही नहीं करती बल्कि संस्कार सिंचन भी करती है। यह धरती मां की तरह धैर्यवान और संवेदनशील है।
३)भक्ति की शक्ति- धर्म शास्त्रों में नारी को शिव भक्ति और शिव शक्ति भी कहा गया है ।उसका ईश्वर में अटूट विश्वास है ।वह भक्ति कर अपने कठिन पथ को सरल बनाती है और जीवन संग्राम में आने वाली परिस्थितियों से जूझने का संबल और साहस प्राप्त करती है। और शायद इसी साहस से असंभव को संभव कर दिखाती है।
४)स्नेह की शक्ति- स्नेह वह महान गुण और शक्ति है जो प्राण वायु के समान जीवन को गति और सुकून देता है। मां ,बेटी ,बहन, पत्नी ,दोस्त हर रूप से वह स्नेह बरसाती है ।इस स्नेह- प्रेम की अद्भुत शक्ति से वह परिवार के सभी सदस्यों को अपना बना लेती है और सबके दिलों पर राज करती है ।
५)पवित्रता की शक्ति- यह वह शक्ति है जो नारी को आकाश की ऊंचाई प्रदान करती है। एक समय ऐसा भी था जब नर और नारी दोनों का ही पतन हुआ और फिर भी निर्विवाद रूप से नारी वृति नर की तुलना में बहुत पवित्र है ।और यही नारी को पूज्य बनाती है।भारत में देवियों की जो पूजा होती है वह नारी की पवित्रता की शक्ति को दर्शाती है और यही वह शक्ति है जिससे नारी ने अपने अस्तित्व को भी सुरक्षित रखा है।
और अंत में मैं यही कहना चाहूंगी कि
भले ही ना हो तन की शक्ति
ना हो बल और धन की शक्ति
पर है तेरे पास
मान की शक्ति
सृजन की शक्ति
पालन की शक्ति
इसलिए ही तो
तेरा पक्ष है भारी
इसलिए तू कहलायी नारी
इसलिए तो तू कहलायी नारी ।।
अनामिका अमिताभ गौरव
आरा (बिहार)