ग़ज़ल
" ख़्वाब"
अगर अच्छा कभी कि़रदार होता।
ज़रूरत क्या है क्यों श्रृंगार होता।
ये केवल सोच है ,जो काम करती।
सुखों का धन ,नहीं आधार होता।
हुनर जो हाथ में होता तेरे तो
नहीं तू भी कभी लाचार होता।
दिलों में इल्म करता रोशनी तो।
ये जीवन का सफ़र बेदार होता।।
रखा होता अगर जो होंसला तो।
समंदर पे तेरा अधिकार होता।।
यकीनन तू गगन में ऊँचे उड़ता।
अगर मन तेरा बेकरार होता।
जो ख़तरों से करें उल्फ़त "निर्झरा"
उसी का ख़्वाब तो साकार होता।
- डॉ.दक्षा जोशी " निर्झरा"
गुजरात।